एफएमसीजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी नेस्ले इंडिया लिमिटेड ने जहां एक ओर शेयर बाजार में अपनी मजबूत स्थिति और वित्तीय प्रदर्शन से निवेशकों का भरोसा कायम रखा है, वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर कंपनी अपने प्रमुख उत्पाद, चॉकलेट, के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए विज्ञान का सहारा ले रही है। कंपनी का हालिया प्रदर्शन और अनुसंधान के क्षेत्र में उठाए गए कदम इसे न केवल एक लार्ज कैप कंपनी के रूप में स्थापित करते हैं, बल्कि एक भविष्योन्मुखी संगठन के रूप में भी पेश करते हैं।

बाजार प्रदर्शन और तिमाही नतीजे

नेस्ले इंडिया का शेयर वर्तमान में 1269.20 रुपये के स्तर पर कारोबार कर रहा है, हालांकि इसमें मामूली गिरावट दर्ज की गई है। 2,47,865 करोड़ रुपये से अधिक के मार्केट कैप के साथ, यह कंपनी एफएमसीजी सेक्टर में अपनी गहरी पैठ बनाए हुए है। साल 1959 में स्थापित इस कंपनी के शेयर का 52 सप्ताह का उच्चतम स्तर 1311.60 रुपये रहा है, जो निवेशकों के लिए इसके आकर्षण को दर्शाता है। बाजार के आंकड़ों पर गौर करें तो कंपनी का पी/ई अनुपात (P/E Ratio) 82.93 है, जो इसके प्रीमियम वैल्यूएशन का संकेत देता है।

कंपनी द्वारा 30 सितंबर 2025 को समाप्त हुई तिमाही के लिए जारी किए गए आंकड़े उत्साहजनक रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नेस्ले इंडिया ने 5,645.25 करोड़ रुपये की कुल बिक्री दर्ज की है। यह आंकड़ा पिछली तिमाही की 5,100.20 करोड़ रुपये की बिक्री की तुलना में लगभग 10.69% अधिक है। वहीं, अगर पिछले साल की इसी तिमाही से तुलना की जाए, तो बिक्री में 10.46% की वृद्धि देखने को मिली है। मुनाफे के मोर्चे पर भी कंपनी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है और कर भुगतान के बाद 753.20 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ (Net Profit) कमाया है, जो इसकी परिचालन दक्षता को प्रमाणित करता है।

कोको की विविधता: चॉकलेट के लिए ‘नूह की नाव’

वित्तीय आंकड़ों से इतर, नेस्ले अपने उत्पादों की स्थिरता को लेकर भी उतनी ही गंभीर है। जलवायु परिवर्तन और बीमारियों के कारण कोको (Cocoa) की खेती पर मंडरा रहे खतरों को देखते हुए, नेस्ले के प्लांट वैज्ञानिकों ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया है। प्रमुख अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर, उन्होंने कोको की आनुवंशिक विविधता का मानचित्रण (mapping) किया है। इस शोध का मुख्य उद्देश्य कोको की उन किस्मों की पहचान करना है जो भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकें।

इस सहयोग के परिणामस्वरूप 96 कोको किस्मों का एक ‘कोर कलेक्शन’ तैयार किया गया है। यह संग्रह वैश्विक कोको आनुवंशिक विविधता के 95% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। नेस्ले इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के प्रमुख जेरोन डिज्कमैन ने इसे कोको विविधता का ‘नूह का आर्क’ (Noah’s Ark) करार दिया है। उनका मानना है कि संरक्षण के दृष्टिकोण से यह संग्रह महत्वपूर्ण है ही, साथ ही यह पारंपरिक प्रजनन कार्यक्रमों (breeding programs) में भी मददगार साबित होगा, जिससे कोको का भविष्य सुरक्षित रह सके।

वैश्विक सहयोग और अनुसंधान का महत्व

यह शोध बीएमसी जीनोमिक्स (BMC Genomics) में प्रकाशित हुआ है और यह पेन स्टेट यूनिवर्सिटी, ट्रॉपिकल एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड हायर एजुकेशन सेंटर (CATIE), फॉक्स कंसल्टेंसी और नेस्ले रिसर्च के बीच सहयोग का परिणाम है। शोधकर्ताओं ने अत्याधुनिक जीनोमिक तकनीकों का उपयोग करते हुए 300 से अधिक कोको किस्मों की आनुवंशिक समानताओं और अंतरों का विश्लेषण किया है।

नेस्ले इंस्टीट्यूट ऑफ फूड सेफ्टी एंड एनालिटिकल साइंसेज के पैट्रिक डेसकॉम्ब्स बताते हैं कि वर्तमान में व्यावसायिक उत्पादन में कोको की बहुत कम विविधता का उपयोग किया जा रहा है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला कमजोर हो जाती है। यह नया ‘कोर कलेक्शन’ शोधकर्ताओं और प्रजनकों को ऐसे पौधे खोजने में मदद करेगा जो जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीले हों, जिनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता हो और जो बेहतर पैदावार के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाला स्वाद भी दें।

भविष्य की राह और किसानों का हित

इस शोध का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि जीनोम अनुक्रमण (sequencing) का डेटा नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) के डेटाबेस के माध्यम से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया गया है। इसका मतलब है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक इसका लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा, नेस्ले कोको की खेती को टिकाऊ बनाने के लिए ‘नेस्ले कोको प्लान’ के तहत किसानों के साथ मिलकर काम कर रही है। कंपनी कोको पॉड्स के कम उपयोग में आने वाले हिस्सों, जैसे कि गूदा, का उपयोग करके कोको फ्लेक्स बनाने जैसी नई तकनीकों पर भी काम कर रही है, जिससे फल का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सके और किसानों की आजीविका में सुधार हो।